सोमवार, 6 फ़रवरी 2023

सामूहिक विवाह सम्मेलन वर्तमान की आवश्यकता


क्या....?

समाज के आमजन स्वयं इसके लिए आगे आएंगे

सामुहिक विवाह क्या होता है? आजकल सामूहिक विवाह समारोह आयोजित होने लगे हैं। ये प्रायः संस्थाओं द्वारा आयोजित होते हैं। एक ही समय पर एक साथ एक ही जगह पर एक से अधिक जोड़ों के विवाह समारोह सम्पन्न होते हैं।
सामूहिक विवाह में बहुत सारे वर व कन्याओं का विवाह एक ही स्थान पर किया जाता है।जिस से खर्चों में कटौती होती है। दिखावटी खर्च पर अंकुश लगता है।

मेरे विचार से यह बहुत ही अच्छी आयोजन है और इसे बढ़ावा देना चाहिए।

सामूहिक विवाह समाज के भागीरथ बंधुओ द्वारा समाज हित में एक सार्थक सोच व अंगद कदम हैं। सामूहिक विवाह मात्र एक विवाह का आयोजन भर नहीं हैं अपितु इसके प्रभाव व समाज हित में लाभ बड़े दूरगामी हैं।किसी कमजोर, जरूरतमंद या असहाय परिवार की कन्या का विवाह करानें से बढ़कर कोई अन्य पुनीत कार्य नहीं है। इस बात का प्रमाण है कि आज हर समाज में समाज बन्धु संगठित होकर  कन्याओं के हाथ सामूहिक विवाह के माध्यम से पीले कर रहे हैं।  क्रमश: सभी जातियों के साथ साथ  अपनी जाति में भी सामूहिक विवाह सम्मेलन को लेकर समाज संगठन सक्रिय हैं। यह संगठन विवाह जैसे सामाजिक पुण्य कार्य में अपनी सराहनीय भूमिका निभा रहा हैं। प्रशंसनीय बात यह भी है कि अब इन सामूहिक वैवाहिक कार्यक्रमों में अपेक्षाकृत अच्छी संख्या देखी जा रही है। मेरा यह मानना है कि समाज संगठन के बैनर तले शादियां कराने पर समय की बर्बादी, दान-दहेज व फिजूलखर्ची जैसी कुरीतियों से भी समाज को मुक्ति मिल सकती है। लेकिन, इसके लिए जरूरी है कि समाज का बड़ा वर्ग भी इसमें सम्मिलित हो ताकि कोई भी जरूरतमंद व कमजोर परिवार अपनी नजरों में हीन व हास का पात्र न महसूस करे।

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सामूहिक विवाह सम्मेलन वर्तमान की आवश्यकता — क्या समाज के आमजन स्वयं आगे आएंगे।

दहेज लेना और दहेज देना कानूनी अपराध है।
तिलक नहीं दहेज नहीं, शादी कोई व्यापार नहीं, खरीदा हुआ जीवन लड़की को स्वीकार नहीं’।

इस कुरीति के चलते कई निर्धन परिवार 

सम्मेलन की ही तरह सामूहिक विवाहों के आयोजन किए जाना समाज के लिए अच्छा कदम हें। इस कार्यक्रम के माध्यम से जो धन, झूठे सामर्थ्य प्रदर्शन व्यय होता हे वह, नई दम्पत्ति के लिए उन्नति का सहारा हो सकता हे। कुछ लोग कह सकते हें की हम इस विवाह व्यय का बोझ उठाने में समर्थ हें। वे यह क्या यह भूल जाते हें की इससे असमर्थ व्यक्तियों पर मानसिक दवाव बनता हे। वे भी अपनी पुत्र या पुत्री के लिए सक्षम परिवार में रिश्ता करना चाहते हें, इस लिए सामुहिक विवाह को नहीं अपना कर, अन्य पक्ष की इच्छा या मानसिकता के आधार पर सामर्थ्य से अधिक व्यय कर आर्थिक बोझ के नीचे दव जाते हें। ओर यह भी हे की कोई भी स्वयं को असमर्थ या कमजोर ,गरीब साबित नहीं होने देना चाहता, चाहे इसके लिए कुछ भी क्यों न करना पड़े, कितना भी कर्ज क्यों न लेना पड़े।

नव जवान युवक ओर युवतियों से आज यह आशा की जा सकती हे, की इन बातों को वे समझ कर अपने परिवार को सामूहिक विवाह के लिए तेयार कर सकते हें, ओर अपने पालको को इस धन की बरबादी से बचा कर कर्ज के खड्डे में, गिरने से बचा सकते हें। यही बात दूसरी ओर भी लागू होती हे की क्या कोई जमाई यह चाहेगा की उसके ससुराल पक्ष को एसी कठिन परिस्थिति का सामना करना पड़े। यदि कोई जमाई एसा चाहे तो वह जमाई बनाने लायक हो ही नहीं लालची जमाई ओर परिवार में कोई बेटी सुखी हो ही नहीं सकती।

सामूहिक विवाह जेसी सामाजिक गतिविधि को आगे बड़ाने, ओर उसके लिए किसी को भी तैयार करने की कोशिश करने वाले महानुभवों को अक्सर यह ताना मिलता हे की स्वयं ने तो अपने बच्चों का विवाह सामूहिक विवाह नहीं करवाया पर हमको शिक्षा दे रहें हें। पर भाई यदि उनसे भूल हो गई हे, ओर वे इसी बात को समझ कर आपसे अनुरोध कर रहे हें, तो क्या आप बात को समझ कर भी सबक नहीं लेंगे? क्या जब तक आप स्वयं की हानी न हो जाए अनुभव से सबक नहीं लेंगे ?

अनुभव में आया हे, की सामर्थवानों के द्वारा अपनाए किसी भी कार्यक्रम को अन्य सभी शीघ्र स्वीकार कर लेते हें, क्या अब वक्त नहीं हे की सभी सक्षम भी अपने पुत्र- पुत्रियों के सामूहिक विवाह में उनका विवाह कर समाज का नेत्रत्व करें। वे सम्पन्न होने के साथ साथ हर तरह से सक्षम भी हें। “महाजनौ येन गता सुपन्था” अर्थात बड़े व्यक्ति जिस राह पर चलते हें वही सच्चा मार्ग हे, के इस शास्त्र वचन को सार्थक कर हम ब्राह्मण अर्थात सर्व श्रेष्ठ होने की बात सार्थक करें।

सामूहिक विवाह के आयोजन से केवल स्वयं का धन ही नहीं बचता, देश की संपदा, के साथ व्यर्थ श्रम ओर बहुत सारी परेशानियों से भी छुटकारा मिल जाता हे। यह सब श्रम पूरा समाज मिलकर कर लेता हे।

मोटे-मोटे तौर पर सामाजिक प्रभावो में हम इस पहल से शादियो की दिन ब दिन बढती फिजूल खर्ची को आइना दिखा रहे हैं वहीँ समाज के आर्थिक रूप से कमजोर तबके की सहायता भी कर रहे हैं। हालाँकि सामाजिक स्तर पर सब समान हैं। फिर भी यह एक जमीनी सच्चाई हैं की सामूहिक विवाह की अवधारणा के विकास में एक आधारभूत तत्व यह भी था की समाज के आर्थिक रूप से कमजोर परिवारो से शादी रूपी खर्चे के पहाड़ का बोझ कम किया जाये। हालाँकि अब समाज में यह भी पहल हो रही हैं की आर्थिक रूप से सम्पन्न उच्च व मध्यम तबके को भी इसमें अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवानी चाहिए। पर यह सब स्वेच्छा से हो तो सोने पर सुहागा होगा क्योंकि वर्तमान में मैं समाज पर किसी तरह के प्रतिबंध की असार्थक कल्पना नहीं कर सकता। और मेरे स्वविचारो में शादी पूर्णतः निजी समारोह हैं और निजी रूप से ही प्रत्येक को इसके आयोजन का अधिकार भी हैं।

दूरगामी परिणाम देखे तो सामूहिक विवाह की पहल से हम कन्या भूर्ण हत्या पर भी एक हद तक सोच बदलने में कामयाब होंगे और दहेज़ रूपी दानव का भी निवारण कर रहे हैं। कन्या भूर्ण हत्या में एक अहम् किरदार माँ बाप के मन उसकी शादी के खर्चे का भी होता हैं जिसका हम इस पहल से निदान कर रहे हैं।
निमंत्रण पत्रिका, निर्देश पत्रिका में इसका प्रसार-प्रचार हो रहा हैं। समाज के भामाशाहो से विनती व आह्वान हैं की वे अपनी इच्छानुसार वस्तुए व आभूषण भेट दे सकते हैं
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