शनिवार, 11 फ़रवरी 2023

दुधाखेड़ी माताजी मंदिर का इतिहास एवं चमत्कार


जय माँ दूधाखेड़ी माताजी

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जय माता दूधाखेड़ी

दूधाखेड़ी माताजी मंदिर का 

इतिहास एवं चमत्कार


दुधाखेड़ी माताजी मंदिर का इतिहास एवं चमत्कार
भानपुरा::-- अनादिकाल से आद्य शक्ति के रूप में दुधाखेड़ी माँ के मंदिर के महत्व मालवा, मेवाड़ व हाड़ोती अंचल के सुदूर गाँव में सुप्रतिष्ठित है। मन्दसौर जिले के तहसील भानपुरा से गरोठ रोड पर 10 किलोमीटर दूर दुधाखेड़ी माताजी का यह दिव्य मंदिर स्थित है। लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। माताजी पंचमुखी रूप में विराजित है। प्रतिमा के सम्मुख अतिप्राचीन एक अखण्ड ज्योत प्रज्वलित है। 
लोक मान्यता है कि पौराणिक नरेश मोरध्वज की आराध्या देवी थी। स्थापत्य इतिहास की दृष्टि से 13 वीं सदी से निरंतर यहाँ पूजा अर्चना का प्रमाण मिलता है। मराठाकाल में लोकमाता अहिल्याबाई ने धर्मशाला बनवाई। कोटा के मुहासिब आला, झाला जालिम सिंह की यह आराध्या देवी रही। इन्होंने यहाँ धर्मशाला व ग्वालियर नरेश सिंधियाँ ने भी यहाँ धर्मशाला बनवाई। प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु यहाँ आते हैं। लकवा बीमारी से पीड़ित यहाँ स्वास्थ्य लाभ लेते देखे जाते हैं। दैहिक, दैविक और भौतिक कष्ट का निवारण होता है। 40 वर्ष पूर्व आकाश से बिजली गिरने से हुए चमत्कार के कारण प्रचलित बलि प्रथा हमेशा के लिए बंद हो गई। और उसके बाद श्रद्धालुओं की संख्या में कई गुना वृद्धि हुई। दोनों नवरात्री में मेला लगता है। लाखों श्रद्धालु धर्म लाभ प्राप्त करते हैं।
प्रबंध समिति की और से मुर्गा व बकरा चिन्ह अंकित चाँदी के सिक्के श्रद्धालुओं के लिए उपलब्ध रहते हैं। धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से मालवा अंचल का यह बेजोड़ स्थल है।

दुधाखेड़ी माता जी का  पहले प्राचीन मंदिर था जिसके स्थान पर भव्य नवीन मंदिर का निर्माण कार्य प्रगति पर है , यहाँ नवरात्रों के शुभ अवसर पर अध्यात्मिक एवं धार्मिक उत्सवों पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, जिसमें मध्यप्रदेश, राजस्थान एवं पुरे देश से माँ भगवती के असंख्य भक्तजन परिवार सहित दर्शनार्थ पहुँचते हैं। 
दुधाखेड़ी माता जी भानपुरा से 12 कि. मी. दुर और गरोठ से 16 कि. मी. दुर स्थित है। नवरात्रि के समय दुधाखेड़ी माताजी के नौ रूप देखने को मिलते हैं। रोज नये रूप मे माता जी अपने भक्तों को दर्शन देती है।(भानपुरा मेरी जान ) मान्यता है कि माता की मूर्ति इतनी चमत्कारी है कि कोई भी भक्त उनसे आँख नहीं मिला पाता है। यहाँ पर जबसे मन्दिर बना है तब से एक अखण्ड जोत भी चल रही है। कई किलोमीटर लम्बी यात्रा करके भक्त यहाँ आते हैं। 
इन्दौर की महारानी अहिल्या देवी ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था और झालावाड़ के पूर्व महाराजा जालिम सिंह भी यहां पर पूजा अर्चना करने आते थे। माता की पाँच मूर्तियाँ विराजित है, रावत मीणा भाट की पोथी के अनुसार प्राचीन समय मे दुधा जी रावत जो मोडि मे बसते थे माता जी के बडे भक्त थे , उनको माता ने स्व्प्न दिया था , कि आगे आने वाले समय मे परिवर्तन होने वाला है , इस कारण में अपना स्थान यहाँ से अन्यत्र बदलना चाहती हूँ, उस समय में जहाँ आज माता का मन्दिर है भयंकर वन था उस वन में एक व्यक्ति वन काट रहा था उसी समय एक स्त्री की आवाज उसको सुनाइ दी कि हरे वन काटना महा पाप है एक वन काट्ना 35 लाख मनुष्यों को मारने के बराबर है उस व्यक्ति ने वह वन काटना बंद कर दिया , उसी समय पश्चिम की ओर से एक वृद्धा आती दिखाइ दी और वन से दुध की धार बहने लगी ,उस वृद्धा ने कहा बेटा वनों की पूजा करना चाहिये ,उस आदमी ने कहा कि माता जी आज के बाद मे वन नही काटूँगा और हाथ जोड़े और लाल चुन्दर वाली माता जी वहाँ से गायब हो गई तो आदमी अचम्भित हो गया तो यह बात जब मोड़ी वाले दुधा जी राव ने सुनी तो वे भी उस वन मे आये ,कही लोग ईधर - उधर के गाँवों से आकर उस वन में बह रही दुध की धार के दर्शन के लिये उमड़ पड़े उसी स्थान पर फिर दुधाखेड़ी माता जी की मूर्ती की स्थापना की गई इस लोक देवी को दुधाखेड़ी माता जी के नाम से प्रसिद्धि मिली। 
दुधा जी रावत जब तक जीवित रहे माता की पूजा अर्चना करते रहे फिर उन्होने गुसाइयो को वहाँ की पूजा का भार सौप दिया। गुसाइयो से फिर तेल्लिया खेड़ी मे बसने वाले नाथो ने ले लिया , तेल्लिया खेड़ी का नाम बाद मे दुधाखेड़ी हो गया। प्राचीन समय मे होलकर रानी अहिल्या देवी भी दुधाखेड़ी माता के दर्शन अपने विश्वास पात्र अंग रक्षिका सिन्दुरी के साथ आई थी सिन्दुरी सोन्धिया राजपूत समाज की थी, जो बड़ी वीर थी, उसी समय उसने एक धर्मशाला दुधाखेड़ी माता के यहाँ बनाई थी। होल्कर राज्य के समय गाँवों एवं नगरों के मन्दिरों के नाम से मन्दिरों के पूजारियों हेतु खेत की भूमि की जागीरे दी थी, जिससे कि मन्दिरों में भगवान की पूजा अर्चना चलती रहे। महारानी अहिल्या बाई ने दुधाखेड़ी माता की मुर्तियों पर चार खम्बे लगवा कर छाया करवाई थी वह छाया आज भी उनकी याद दिलाती है।
इसके बाद यशवंत राव होल्कर प्रथम ने धुनि के पास वाली धर्मशाला का निर्माण करवाया था और धुनी वाली धर्मशाला झालावाड़ दरबार ने बनवाई थी वे भी देवी के बड़े भक्त थे । सीतामउ के राजा ने अपने राज्य मे मन्दिर के पूजारियों हेतु खेती की भूमि जागीर मे दे दी थी, महाराज यशवंतराव होल्कर जब भी युद्ध के लिये प्रस्थान करते थे, तो पहले अपने घोड़े से दुधाखेड़ी माता के यहाँ आकर दर्शन करते थे। 
कहते है कि माता जी के यहाँ रखी उनकी तलवार अपने आप उठकर अपने आप आ जाती थी, वे उसी को लेकर युद्ध मे प्रस्थान करते थे अपने पास की तलवार वे माता जी के यहाँ रख देते थे , उन्होने अपने मन मे निश्चय किया था कि अंग्रेजो को नाको चने चबवा दूँगा । आज भी यशवंतराव होलकर कि एक तलवार दुधाखेडी माता के यहाँ रखी हुई है। दरवाजा के पास की एक धर्मशाला शिवाजी राव होलकर ने एव दुसरी तुकोजी राव होलकर ने बनवाई थी , प्राचीन मान्यता अनुसार माता के दरबार में शारीरिक विकलांग (लकवा) एवं मानसिक व्याधियों से मुक्ति मिल जाती है।

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